सं 1934 में लिखे इस उपन्यास ने आदरणीय भगवती चरण वर्मा जी को ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में स्थापित किया।इस उपन्यास का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है और अब तक इसकी लाखों - लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? - जैसे प्रश्नों को एक कथानक में पिरो कर बहुत ही सहजता से इनका उत्तर भी बताया गया है कि ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।’’ लेकिन मज़े की बात कि उत्तर के पहले का विश्लेषण आपको अपनी रूमानियत में ऐसे समेट लेगा कि आप उत्तर से कहीं भी असहमत नहीं होंगे।इस सुपरहिट उपन्यास पर ऐसी ही सुपरहिट फिल्म भी बन चुकी है और अब इसे सुनना अत्यन्त ही रोचक एवं सुखदायक होगा।