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आया हूँ बनकर "मुसाफ़िर" इस दुनिया में,
चला जाऊँगा बनकर "मुसाफ़िर" ही इस दुनिया से।
ना रहेगा यहाँ कोई निशान पैरों का मेरे,
ना ही रहेगा कोई नामोनिशान वजूद का मेरे।
मिली हैं किराए कि साँसें जो यहाँ मुझे,
हो जाएंगी खर्च वो भी यहाँ सफर करते-करते।
छोड़ जाउंगा ये शरीर भी इस धरती पे,
पर जाएगी मेरी रूह बनकर "मुसाफ़िर" फिर किसी दुनिया में।
~"मुसाफ़िर"~
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